
मुंबई/नई दिल्ली: मालेगांव ब्लास्ट केस को लेकर एक बार फिर सियासी भूचाल आया है। महाराष्ट्र एटीएस के एक रिटायर्ड अधिकारी ने दावा किया है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने के आदेश मिले थे, लेकिन सबूतों की कमी के चलते ऐसा नहीं किया गया।
पूर्व ATS अफसर के मुताबिक, जांच के दौरान राजनीतिक दबाव था कि आरएसएस नेतृत्व को आरोपी बनाया जाए। लेकिन जांच टीम ने कानूनी प्रक्रिया और साक्ष्यों के आधार पर ही कदम उठाए, जिससे यह गिरफ्तारी टाल दी गई।
क्या था मामला?
2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए धमाके में 6 लोगों की जान गई थी और दर्जनों घायल हुए थे। शुरुआती जांच में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित जैसे नाम सामने आए थे। मामला तेजी से ‘हिंदू आतंकवाद’ से जोड़ा गया था।
अब क्यों हो रही है चर्चा?
रिटायर्ड अधिकारी का यह बयान सामने आने के बाद कई सवाल उठने लगे हैं— क्या जांच निष्पक्ष थी? क्या किसी विशेष विचारधारा को बदनाम करने की कोशिश की गई? क्या मोहन भागवत को राजनीतिक वजहों से टारगेट किया जा रहा था?
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं:
इस दावे के बाद विपक्षी दलों ने तत्काल उच्चस्तरीय जांच की मांग की है, जबकि आरएसएस और बीजेपी ने इसे एक राजनीतिक षड्यंत्र बताया है।