
वर्षों की कड़ी मेहनत, धैर्य और बेजोड़ अनुशासन से एक खिलाड़ी अपने खून-पसीने से मिट्टी को सींचता है। उन्होंने आज झज्जर के छारा गांव में भाई वीरेंद्र आर्य के अखाड़े का दौरा किया और ओलंपिक पदक विजेता बजरंग पुनिया और अन्य पहलवानों से बात की।


एक सवाल बाकी है – अगर भारत की इन बेटियों को अपना मैदान छोड़कर सड़कों पर अपने अधिकारों और न्याय के लिए लड़ना पड़ेगा तो अपने बच्चों को यह रास्ता चुनने के लिए कौन प्रोत्साहित करेगा?
किसान परिवारों के जो भोले-भाले, सीधे-सरल लोग हैं, उन्हें तिरंगे की सेवा करने दीजिए। वे पूरे मान-सम्मान के साथ भारत को गौरवान्वित करें।’