
कौन थे दीवान टोडर मल जैन जिन्होंने अपना सब कुछ गुरु साहेब पर न्योछावर कर दिया | जिन्होंने उस समय सब से महंगी जमीन खरीदी | जिनके कृत्यों को आज भी सिख धर्म नहीं भूल सका जिनका आभार आज भी सिख धर्म व्यक्त करता है | जिनकी जैन धर्म द्वारा सरहिंद में मूर्ति बनाने का एलान श्री आत्म वल्लभ समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति शांतिदूत जैनाचार्य श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म सा ने किया | आइये जानते हैं उस महान शख्सियत के बारे में…….
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी जिन्होंने धर्म के खातिर अपने आप को और अपने पूरे परिवार को वार दिया | श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे बेटे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह जिसकी उम्र मात्र 5 और 7 साल थी उनके दृढ निश्चय व धर्म के प्रति ऐसी आस्था थी कि उन्होंने जालिम मुग़ल हुकूमत के सामने घुटने नहीं टेके और ख़ुशी ख़ुशी शहीदी का जाम पी लिया | गुरु साहेब के प्यारे सिखों की ओर से भी अपने तन,मन तथा धन के साथ वर्णन योग्य तथा बहुमूल्य सेवाएं की गई है। इस प्रकार की सेवाओं में ही शामिल है दीवान टोडर मल द्वारा साका सरहिंद के समय गुरू परिवार के प्रति की गई सेवा। दीवान टोडर मल सरहिंद के एक धनवान व्यापारी थे, जो श्री गुरू गोबिंद सिंघ जी के प्रति सच्ची आस्था रखते थे । एक सफल व्यापारी होने के कारण उनके पास बेशुमार दौलत और जमीन थी।जिस हवेली में वह रहते थे उसको ”जहाज महल“ के नाम से जाना जाता है।
दिसंबर 1704 ई. को मुगल हकुमत द्वारा श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतिह सिंह जी को अपना धर्म ना छोड़ने के कारण, दीवारों में जिंदा चुनवा कर शहीद कर देने के बाद तुरंत एक शाही फुरमान जारी कर दिया गया था कि सरकारी जमीन पर साहिबजादों और माता गुजरी जी का संस्कार नहीं किया जा सकता। यह भी हुक्म दिया गया कि उनका संस्कार केवल चौधरी अटटा से जमीन का प्लाट खरीद कर ही किया जा सकता है। इस हुक्म में यह भी प्रतिबन्ध था कि जितनी जमीन की जरूरत है,उस पर सोने के सिक्कों (अर्शफियां) को सीधा खड़ा करके ही खरीदा जा सकता है।
उस समय किसी में इतना साहस नहीं था कि वह साहिबज़ादों का इतना मंहगा संस्कार कर सके।इस संकटकालीन समय में दीवान टोडर मल अपनी ज़िन्दगी को खतरे में डाल कर आगे आए और पूरे सम्मान के साथ संस्कार करने के लिए जितनी जमीन चाहिए थी उस पर सोने के सिक्के खड़े कर दिये।एक अनुमान के अनुसार उस जमीन को खरीदने के लिए लगभग 78000 सोने के सिक्कों की आवश्कता थी,जिसकी आज के सोने के सिक्कों की तुलना में एक बहुत बड़ी कीमत बनती है।जमीन की कीमत चुका के सेठ टोडर मल ने बाबा जोरावर सिंह,बाबा फतिह सिंह और माता गुजरी जी के संस्कार के लिए जरूरी प्रबंध किए और पूर्ण अदब के साथ संस्कार किया। अपनी धनाढ़यता और खुशहाली को गुरू के परिवार तथा प्यार के लिए कुर्बान करके दीवान टोडर मल सिख इतिहास में सदा के लिए अमर हो गए।उनकी इस नेक और अदभुत सेवा की याद को ताजा रखने के लिए एक विशाल संगत-हाल का निर्माण किया गया है जो उनके प्रति सिख भाईचारे के आदर का प्रतीक है और अब जैन तीर्थ माता चक्रेश्वरी देवी जैन सभा द्वारा दीवान टोडर मल की याद में सरहिंद में एक विशालकाय मूर्ति बनाई जायेगी |